Saturday, December 19, 2009

haal-ae-dil

ले कर जो बैठे हम अपनी कलम को
क्या नजर हम तुम को पैगाम करे ,

दिल में उबलते शोले लिखे
या दर्द में डूबी जिंदगी तमाम लिखे ,

चाँद का जिक्र जो छेड़ेगे तो वीरान रात मिलेगी
फूलों की जो बात होगी तो शबनम में आन्शुओ की नमी होगी

तो अब तुम ही कहो क्या दर्द-ऐ-हाल लिखे
या रेत की तेरे फिसलते जज़्बात लिखे

यू तो मयस्सर है हमें हमारी दुनिया
एक वीराना छिप के बैठा है सीने में मेरे

डरता है चेहरा अपना दिखाता नहीं
है हमारे रूह-ऐ -चमन का किस्सा

फिर भी बयाँ हाल-ऐ- दिल करता
रूबरू जो हो जाए हमसे तुम , ऐसा क्या लिखे

जो दर्द दिल-ऐ -लहू का लफ्जों में बदल जाए,
ऐसा क्या पयाम लिखे

मेरी रूह के दर्द को जो समझ जाओ तुम
ऐसा क्या तराना लिखे

मेरे रिसते खामोश जखम, जो तेरी आँखों से बह जाए
हम कुछ ऐसा अपना हाल बयाँ करे

No comments:

Post a Comment