हमारी दोस्ती और प्यार के बीच की पतली लकीर
कब मैंने पर की , नहीं पता
उन नजदीकियों का सबब मैंने बताना चाहा था मगर
तू नहीं समझी
संग चाहता था तुम्हारा सदा के लिए ,
लेकिन कैसे कहता तुमसे
तुम्हारे लिए अपना प्यार जताना चाहा था मैंने पर
तू नहीं समझी
कभी झांक कर मेरी आँखों में देखा होता
सारी दास्तान पड़ लेते तुम
बे-इन्तेहाह प्यार झलकता था इनसे मगर
तुम नहीं समझी
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